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पहले का जमाना ……..

यादो की अमानत ....
यादो की अमानत ....
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पहले का जमाना , जमाना  था आदम
उम्मीद भी थी , सुकून भी था।
पता नहीं केसा परवाना था आदम।

सोहरात , रुपैया काम ही सही ,
आबरू का दीवाना था आदम।
पहले का ज़माना – ज़माना था आदम।

जल्दी देरी तो लगी ही रहती
पहले ही इस देश मैं आना था आदम।
दादी जब अपनी यादे बताती ,
लगता हे वो भी ज़माना था आदम।

स्वर्ग कहा आशम में होगा ,
बिछड़ो को धरती पे लाना था आदम।
वो भी ज़माना -ज़माना था आदम

जश्न न सही शामे तो होंगी
समय  को वही  रुक  जाना था आदम।
वो भी ज़माना -ज़माना था आदम

अब की बात मैं  क्या बताऊ
लोग बहुत हे , चेहरे बहुत हे
दूरिया को न बढ़ाना था आदम।
वहि ज़माना -ज़माना था आदम।

रुसवाई करूँगा आज कल का में
हमको भी जन्नत दिखाना था आदम।
वही ज़माना -ज़माना था आदम।

सेवा था , मन जान बहुत था  ,
घर मैं टूटी खटिया ही सही , पर दिल में मकान बहुत था।

कुछ पढ़िए इस ज़माने के बारे मैं। ………

सुबह को माखन – ब्रेड , शाम को कढ़ी हे .
बहार एक गाड़ी कड़ी है  /
गाड़ी में बैट के रुतबा है पाया
२ रुपए कमाया , १०० रुपए उड़ाया,
बाप का पैसा हे मैंने क्या गवाया।

पैसा पेड़ से आता नहीं हे,
ये बात बेटे को बताना था आदम।
वही ज़माना ज़माना था आदम।

समय को रुक जाना था आदम ,
वही ज़माना – ज़माना था आदम।

गेट नहीं होता था घरो मैं ,
सबका आना जाना था आदम।
वो  भी ज़माना – ज़माना था आदम।

एक्का दुक्का मैकदा होते थे ,
सबको गम न मिटाना था आदम।
वही ज़माना ज़माना था आदम।

इट का घर होता नहीं था।
पत्थर का तब कहा ज़माना था आदम।
वही ज़माना ज़माना था आदम।

चहेरे की सूरत दागी ही सही ,
सुन्दर दिलो का दीवाना था आदम।
वो  भी तो ज़माना था आदम।

छल कपट तब होता नहीं था ,
परिश्रम का मेहनताना था आदम।
वही ज़माना ज़माना था आदम।

-दिव्यांश पाठक

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